समान नागरिक संहिता क्या है? Uniform Civil Code क्‍या है? और क्‍यों है जरूरी!

Uniform Civil Code भारत में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने को लेकर चर्चा तेज हो गई है। इसके लिए देश के नागरिक से राय मांगने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। समान नागरिक संहिता को मानने वाले देशों की लंबी सूची है।

समान नागरिक संहिता क्या है? Uniform Civil Code क्‍या है? और क्‍यों है जरूरी!

क्‍या है Uniform civil code?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। इसका अर्थ है एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।

समान नागरिक संहिता यानी कि एक देश एक कानून। समान नागरिक संहिता के तहत देश में रहने वाले सभी धर्मों के लोगों के लिए एक कानून होगा। समान नागरिक के तहत विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना, संपत्ति के बंटवारे जैसे विषय आते हैं। फिलहाल भारत में ऐसा नहीं है। भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है, यहां कई निजी कानून धर्म के आधार पर तय हैं।

भारत में हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लिये एक व्यक्तिगत कानून है। वहीं, मुसलमानों और इसाइयों के लिए उनके अपने कानून हैं। इस्लाम धर्म के लोग शरीअत या शरिया कानून को मानते हैं, जबकि अन्य धर्म के लोग भारतीय संसद द्वारा तय कानून को सर्वोपरी मानते हैं।

केंद्र सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को संसद के मानसून सत्र में पेश कर सकती है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यूनिफॉर्म सिविल कोड से जुड़ा बिल मानसून सत्र में सरकार की ओर से संसदीय स्थायी समिति को भेजा जा सकता है। तीन जुलाई को संसदीय समिति की बैठक बुलाई गई है।

शीर्ष अदालत का समान नागरिक संहिता पर रुख?
1– ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है. साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि समान नागरिक संहिता विरोधी विचारधाराओं वाले कानून के प्रति असमान वफादारी को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण में मदद करेगी.

2– बहुविवाह से जुड़े सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस दौरान उन्‍होंने बचाव करते हुए कहा था कि यूसीसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है.

2– गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा. लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया.

समान नागरिक संहिता के फायदे और नुकसान क्या हैं?
यूसीसी को लागू करने से जटिल और अक्सर परस्पर विरोधी व्यक्तिगत कानूनों को कानूनों के एक समान सेट से बदलकर कानूनी प्रणाली सरल हो जाती है। यह कानूनी अस्पष्टताओं और विरोधाभासों को कम करता है, नागरिकों के लिए कानूनी निश्चितता और स्पष्टता सुनिश्चित करता है।

समान नागरिक संहिता के क्या लाभ हैं?
समान नागरिक संहिता विभिन्न पर्सनल लॉज़ के अंतर्गत महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न को दूर करके लैंगिक न्याय एवं समानता सुनिश्चित करेगी। यह विवाह, तलाक़, उत्तराधिकार, गोद लेने, भरण-पोषण आदि मामलों में महिलाओं को समान अधिकार और दर्जा प्रदान करेगी।

समान नागरिक संहिता UCC के नुकसान क्या हैं?
यूसीसी को लागू करना सांस्कृतिक संवेदनशीलता और व्यक्तिगत पहचान के लिए खतरे के रूप में देखा जा सकता है , क्योंकि इसके लिए व्यक्तियों को एक समान कानूनी ढांचे के अनुरूप होने की आवश्यकता हो सकती है जो उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं और मान्यताओं के साथ संरेखित नहीं हो सकता है।

क्यों UCC है समाज की जरूरत?
देखा जाए तो यूनिफॉर्म सिविल कोड से कोई नुकसान नहीं है। इससे किसी धर्म को मानने या नहीं मानने पर रोक-टोक नहीं लगाई जा रही। कोई भी व्यक्ति किसी भी तरीके से शादी करे, चाहें तो हिंदू धर्म के तरीके से या मुस्लिम तरीके से। यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) आपको वह अधिकार दिलाएगा तो भारत का नागरिक होते हुए आपके पास होने चाहिए।
इस कानून को राजनीतिक चश्मे के बजाए समाज के नजरिए से देखा जाए तो यह भारत के सभी नागरिकों के लिए समानता, सशक्तिकरण, जागरुकता, कानून का सम्मान, और प्रगतिवाद लेकर आएगा।

UCC को लागू करने में चुनौतियाँ: 
राजनीतिक जड़ता: किसी भी राजनीतिक दल ने इस संहिता को अधिनियमित करने की ईमानदारी पूर्वक और नियमित तौर पर प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है क्योंकि इसे हमेशा से ही एक संवेदनशील और विभाजनकारी मुद्दे के रूप में देखा जाता है जिसका उनके वोट बैंक पर प्रभाव पड़ सकता है।
इसके अतिरिक्त विभिन्न समूहों के व्यक्तिगत मुद्दों और विविध दृष्टिकोण होने के कारण इस संहिता के दायरे, इसकी विषयवस्तु तथा स्वरूप को लेकर राजनीतिक दलों और हितधारकों के बीच कोई सहमति नहीं है।
जागरूकता और शिक्षा का अभाव: भारत में बहुत से लोग अपने व्यक्तिगत कानूनों या सामान्य कानूनों के अंतर्गत अपने कानूनी अधिकारों और दायित्वों के बारे में भी नहीं जानते हैं। 
उन्हें UCC के लाभों और कमियों के बारे में या UCC  को अपनाने या अस्वीकार करने वाले अन्य देशों के अनुभवों के बारे में भी शिक्षित नहीं किया गया है।
वे अक्सर निहित स्वार्थी तत्त्वों या सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा फैलाई गई गलत सूचना या प्रचार से प्रभावित होते हैं।

आगे की राह ?

तुलनात्मक विश्लेषण: भारत में विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों का व्यापक तुलनात्मक विश्लेषण करने की आवश्यकता है। इससे समानताओं और विवाद के क्षेत्रों को समझने में मदद मिलेगी।
सामान्य सिद्धांतों का अधिनियमन: तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर हम व्यक्तिगत प्रस्थिति/दर्जे का एक कानून बना सकते हैं जिसमें विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों द्वारा साझा किये गए सिद्धांतों को शामिल किया गया हो।
विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों से निकटता से संरेखित होने वाले इन सामान्य सिद्धांतों को एक समान कानूनी ढाँचा स्थापित करने के लिये तुरंत ही लागू किया जा सकता है।
फैमिली लॉ बोर्ड: पारिवारिक मामलों से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों का अध्ययन करने और उनमें बदलाव की सिफारिश करने के लिये केंद्रीय कानून मंत्रालय के भीतर एक फैमिली लॉ बोर्ड स्थापित करने की आवश्यकता है।

ब्रिक बाय ब्रिक दृष्टिकोण: वर्तमान में एक समान संहिता की तुलना में एक न्यायसंगत संहिता कहीं अधिक आवश्यक है; समान नागरिक संहिता की व्यवहार्यता, स्वीकृति और व्यावहारिकता के बारे में जानकारी देने के लिये चुनिंदा क्षेत्रों अथवा समुदायों में पायलट परियोजनाएँ शुरू की जा सकती हैं। 
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